কোভিড-১৯
মহামারী চলছে
সবাই চুপ, এক বৃত্তের মধ্যে
ছয়-ছয় ফুটের দূরত্বে,
মাস্ক পরে বসে পড়েছে!
মাটির গোল্লাটা ঘুরছে পুরো
মনে হয় যেন সময় খেলছে খো-খো
কে জানে কবে, কোথায় আর কার পিছনে
ফেলে রেখে যাবে সেই চাবুকচিহ্ন
পায়ের ছাপ পড়েই চলেছে
কিন্তু নজরে আসে না কেউই
কেবল বিরামচিহ্নগুলো যখন পড়ছে চোখে,
বুঝি কতজন আরও গিয়েছে খারিজ হয়ে
এ বৃত্ত থেকে…
সবাই চুপ, এক বৃত্তের মধ্যে
ছয়-ছয় ফুটের দূরত্বে,
মাস্ক পরে বসে পড়েছে!
Covid-19
महामारी लगी है___
सभी ख़ामोश हैं, इक दायरे में
छह छह फ़ुट के फ़ासले पर,
मास्क पहने बैठ गए हैं!
ज़मीन का गोला पूरा घूम रहा है
अजल लगता है खोखो खेल रही है
न जाने कब, कहां, और किस के पीछे फेंक
जायेगी वो “कोड़ा”
निशां पैरों के पड़ते जा रहे हैं
मगर दिखता नहीं कोई,
नज़र आते हैं जब वक़फ़े,
पता चलता है कितने और ख़ारिज हो गए हैं
दायरे से…
सभी ख़ामोश हैं, इक दायरे में
छह छह फ़ुट के फ़ासले पर,
पहन के मास्क बैठे हैं!
ভারি মিঠে এই মাটি…
ভারি মিঠে এ ধরার মাটি, যেন গুড়ের ঢেলা
খুব বিষাক্ত এক হাওয়া আছড়ে পড়েছে এর ওপর
এই বাতাসের ছোঁয়াও যেন না লাগে
একটু তফাতে গিয়ে বোসো কিছুক্ষণ
রোদ্দুর আসতে দাও!
এ মাটিকে তো আমরা তছনছ করেছি খুব
নদীর কোমর ভেঙেছি
ধাক্কা মেরে গুঁড়িয়েছি পাহাড়-পর্বত
দেখো, মাটি যেন বুড়িয়ে না যায়, একটু আড়মোড়া ভাঙতে দাও
রোদ্দুর আসতে দাও!
যখন সূর্য উঠবে, আর নিজের কিরণ দিয়ে
ফালাফালা করবে এই ভয়ানক হাওয়াকে
কীটপতঙ্গের মতো ভিড় কোরো না
আলাদা আলাদা হয়ে দাঁড়িয়ে থেকো
আর— রোদ্দুর আসতে দিও।
बहुत मीठी है ये ज़मीं…
बहुत मीठी है ये ज़मीं कि, गुड़ की ढेली है
बड़ी मुहलिक हवा उतरी है इस पर
इसे घुन्न न लगे ___
हट कर ज़रा सी देर बैठो,
धूप आने दो!
उधेड़ा है बहुत हमने ज़मीं को
कमर तोड़ी है दर्याओं की हमने
पहाड़ों को धकेला है ___
ज़मीं बूढ़ी न हो जाये ज़रा कर्वट बदलने दो
धूप आने दो !
उठेगा आफ़ताब और छानेगा,
किरनों से इस मुहलिक हवा को
मकोड़ों की तरह न भीड़ करना
अलग हो कर खड़े हो जाओ,
और___ धूप आने दो!
কোভিড-১৯ (স্থানান্তর)
মহামারী চলছে—
কারিগর, মজদুর সব পালিয়েছে দেশঘরের দিকে
শহরের সব মেশিন বন্ধ হতে শুরু করেছিল
ও-সবের জন্যই অবশ্য চলে কেজো হাত-পা
না হলে, জীবন তো বুনে এসেছি গ্রামেই
একর, দু’একর জমি বা পাঁচ একর
ফসল কাটা-বোনা, সব ওখানেই তো ছিল
জোয়ার, ধান, মকাই, বাজরা, সব
জ্যেঠতুতো, মামাতো ভাইদের সঙ্গে ভাগাভাগি
নয়ানজুলির পাশে দাঙ্গা, নালার ধারে ঝগড়া
কখনও লেঠেল আমাদের, কখনও ওদের,
দাদু, দিদিমা, ঠাকুমাদের মামলা
আশীর্বাদ, বিয়ে,
ধানের জমি, খরা, বন্যা,
প্রতিবার আকাশ ভেঙে বৃষ্টি পড়ুক বা না পড়ুক
মরব তো ওখানেই, জীবন যেখানে
এখানে তো দেহটাকে নিয়ে এসে
প্লাগের মতো গুঁজে দিয়েছিলাম
প্লাগ খুলে নিল সবাই
‘চলো— এবার ঘরে ফেরো’— মুহূর্তে সবাই ঘরমুখো হল
মরব তো সেখানে গিয়েই, যেখানে জীবন রেখে এসেছি।
Covid-19 (Migrating)
महामारी लगी है___
घरों को भाग लिये थे, सभी मज़दूर, कारीगर
शीनें बन्द होने लग गई थीं शहर की सारी
उन्हीं से हाथ पाँव चलते रहते थे
वगरना ज़िंदगी तो गाँव ही में बो के आये थे
वो ऐकड़ और दो ऐकड़ ज़मीं, या पाँच ऐकड़
कटाई और बुवायी सब वहीं तो थी
जवारी, धान, मक्की, बाजरी, सब
वो बटवारे चचरे और ममेरे भाईयों से
फ़साद नाले पे, परनाले पे झगड़े
लठैत अपने, कभी उनके,
वो नानी, दादी, दादू के मुक़द्दमे__
सगाई, शादियाँ,
खलियान, सूखा, बाड़,
हर बार आस्माँ बरसे न बरसे!
मरेंगे तो वहीं जाकर, जहाँ पर ज़िंदगी है!
यहाँ तो जिस्म लाकर ’पलग’ (plug) लगाये थे!
निकाले पलग सभी ने,
“चलो__ अब घर चलें” __ और चल दिए सब!
मरेंगे तो वहीं जाकर, जहाँ पर ज़िंदगी है!
কোভিড-১৯ (পরিযায়ী)
এমনই মানুষের ঢল ’৪৭-এও দেখেছিলাম আমি
এরা গ্রামের দিকে চলছে, দেশের পানে
আমরা গ্রাম থেকে পালিয়েছিলাম, দেশের উদ্দেশ্যে
আমাদের ‘শরণার্থী’ ডেকে দেশ রেখে দিয়েছিল
শরণ দিয়েছিল
আর এদের আটকে দেয় নিজেদের সীমানায়
এদের আশ্রয় দেওয়া বিপজ্জনক
আমাদের আগে-পরে তখনও এক খুনে সময় ছিল
জাত-ধর্ম জিজ্ঞেস করত
আমাদের পিছনে এক খুনে সময় এখন ধাওয়া করছে
যা জাত-ধর্ম জিজ্ঞেস করে না,
একেবারে খুন করে দেয়
ভগবান জানে, এই ভাগাভাগি বেশি ভয়ের, না কি সেই ভাগাভাগি!
Covid-19 (Migrants)
कुछ ऐसे कारवाँ, देखे हैं (47) सैंतालीस में भी मैंने
ये गाँव भाग रहे है, वतन में
हम अपने गाँव से भागे थे, जब
निकले थे वतन को___
हमें शरणर्थी कह के वतन ने रख लिया था
शरण दी थी,
इन्हें इनकी रियास्त की हदों पर रोक देते हैं
शरण देने में ख़तरा है
हमारे आगे पीछे, तब भी इक क़ातिल अजल थी
वो मज़हब पूछती थी,
हमारे पीछे इक क़ातिल अजल अब भी लगी है
न मज़हब, नाम, ज़ात, कुछ पूछती है
मार देती है
ख़ुदा जाने ये बटवारा बड़ा है, या वो बटवारा बड़ा था!